खुद से ही डर रहा है आने वाला कल,
नाउम्मीदी के ऐसे गुज़रे किस्से तुम सुनाते हो।
दुनिया से तो कह आये तुम कि ज़ख्म है हल्का,
दर्द आज भी है, दिल को आज भी सहलाते हो।
सीधी बात कह डालूँ, तो रूठ जाते है मुझसे,
फिर इलज़ाम भी देते हैं, कि बातें क्यों उलझाते हो?
होश अपना तुम किसी के नाम कर आये,
अपना नाम भी अब आइना देख कर बतलाते हो।
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